भारत का नव-तीर्थ – स्टैच्यू ऑफ यूनिटी

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— ओमप्रकाश धनखड़

राष्ट्र जीवन के संदर्भों में व्यक्ति का जीवन काल बहुत छोटा होता है, परंतु कुछ राष्ट्र निर्माताओं की छाप सदियों तक क़ायम रहती हैं। अमेरिकी राष्ट्र जीवन में जैसे अब्राहम लिंकन व द. अफ्रीका के राष्ट्र जीवन में नेलसन मंडेला का स्थान बना है, वैसे ही सरदार वल्लभ भाई पटेल की अमिट छाप सदियों तक भारत के राष्ट्र जीवन में रहने वाली है।

राजनैतिक जीवन में श्रेय की हेराफेरी स्वाभाविक लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है। सत्तासीन शासक समस्त श्रेय स्वयं लेने के प्रयासों में महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों की जन स्मृति में पहुंच एंव उसके क़ायम होने से रोकने का सतत प्रयास करते है। ऐसे ही कारणों से भारत में भी अनेक महान व्यक्तित्व उनके योगदान के अनुरूप स्थापित नहीं होने दिए गए। सरदार उन्हीं शख्सियतों में से एक हैं, जिनका योगदान बहुत बड़ा है किंतु उनकी प्रतिमा लघु रखने का प्रयास रहा।

अब विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा उनके योगदान के अनुरूप साधू बेट, सरदार सरोवर बांध पर नर्मदा जिले में, वडोदरा से 90 किलोमीटर दूर स्थापित होने वाली है। शिलान्यास के समय तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री व अनावरण के समय भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन व निर्णय से ये प्रतिमा प्रकाश-स्तम्भवत सदियों तक यह खड़ी रहेगी।

सरदार के योगदान को समझने के लिये कुछ सवाल खड़े करने ज़रूरी है। यदि सरदार नहीं होते तब क्या तत्कालीन भारत एकजुट होता? भारत के अनेक स्वतंत्र टुकड़े ब्रिटिशर्स जैसे छोड़कर जाना चाहते थे वे स्वतंत्र देश बनते? बिना भौगोलिक सम्पर्क के भी पाकिस्तान हमारे बीच-बीच में होता? विभाजित भारत के ये टुकड़े शत्रुभाव के साथ जैसे आज हमसे पाकिस्तान लड़ रहा हैं, कितने लड़ते? अपने ही तीर्थों के दर्शन के लिये जैसे आज हम चीन, पाकिस्तान व बांगलादेश का वीज़ा लेकर जाते है, क्या सरदार के अपने गुजरात के जूनागढ़ में, तेलंगाना के हैदराबाद में, पूर्वोत्तर भारत के क्षेत्रों में हमें वीज़ा लेकर जाना पड़ता? सरदार के काम का आकलन 1947- 1950 के वर्षों व उन स्थानों से गुज़रे बिना नहीं हो सकता जहां से वो गुज़रे थे।

भारत के अनेक विद्वान भारत को सांस्कृतिक राष्ट्र कहते है। भारत एक प्राचीन राष्ट्र है, जिसकी राष्ट्रीयता का आधार, एक राज्य इकाई नहीं, एक संस्कृति है। क्या 565 अलग अलग राज्य इकाइयों के साथ, वर्तमान भारत विश्व में अपना स्थान बना पाता? राष्ट्र राज्य सिद्धांत को मानने वाले लोग, एक भूमि के टुकड़े पर, एक शासन की ईकाई स्थापित होने पर ही राष्ट्र के स्वरूप को स्वीकार करते है। यही वर्तमान विश्व की हक़ीक़त भी है।

इस सांस्कृतिक-राष्ट्र को, राष्ट्र-राज्य बनाने का श्रेय, केवल और केवल सरदार के नाम है। यह राष्ट्र, राष्ट्र-राज्य के वर्तमान स्वरूप के बिना अपनी नियति को पाने में विफल रहता। सांस्कृतिक राष्ट्रों का भी अंतिम ध्येय एक सशक्त राष्ट्र के रूप में खड़ा होने का होता है, जिसका शासन तंत्र भी एक हो।

स्टैच्यू आफ यूनिटी, वर्तमान भारत के भारत बनने की कथा भी है, तथा उस शिल्पी को श्रद्धांजलि भी है, जिसने स्वतंत्रता के समय भारत को एकजुट कर राष्ट्र के रूप में खड़ा किया था। यह इतिहास के पन्नों को नई पीढ़ी के सामने खोलने की पाठशाला भी हैं। यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा खड़ी होकर खुद एक इतिहास की भी रचना करने जा रही हैं। सरदार भारत की एकता व अखंडता का जो कार्य जीवन में करके गये, वही नव भारत के राष्ट्रीय-तीर्थ के रूप में खड़ी होने वाली, ये लौह पुरूष की प्रतिमा करेगी।

भारत के हर एक गांव से आये किसान के प्रयुक्त लोहे व हर गांव के देवस्थान से आई, भावनाओं से भरी पवित्र मिट्टी से जो बनी है। यदि हम सरदार के व्यक्तित्व व कृतित्व में उतरेंगे तो सरदार की ऊंचाई से भी जुड़ सकेंगे जो अपनी प्रतिमा के समान ऊंची है। भारत का यह नवतीर्थ, इस राष्ट्र के शौर्य का वर्तमान पीढ़ी से परिचय करायेगा तथा इज़राइल के यादेवशम् म्यूज़ियम की तरह छुपाये गये इतिहास के पन्नों को खोलेगा। सरदार की 144 वीं जयंती के मौके पर अब उनकी प्रतिमा लघु नहीं रहेगी, उनके व्यक्तित्व के अनुरूप विराटरूप में खड़ी होगी।

(लेखक स्टैच्यू आफ यूनिटी के लिये लौह मिट्टी संग्रहण के राष्ट्रीय कोर्डिनेटर व वर्तमान में हरियाणा के कृषि व पंचायत मंत्री है। )