अंतरिम बजट (2019) और पांच साल की दिशा

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अरुण जेटली

श्रीपीयूष गोयल द्वारा प्रस्तुत अंतरिम बजट प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के उन उच्च नीतिगत फैसलों को आगे बढ़ाता है, जो उन्होंने इस राष्ट्र के समक्ष रखे है। हालांकि, चुनावी वर्ष में प्रस्तुत किए जाने वाले अंतरिम बजट वोटों को लुभाने वाले होते रहे है और इसका असर अगली सरकार बनने तक ही होता है। लेकिन हमने यह साबित किया है कि निर्णायक रूप से देश की प्रगति के लिए अर्थव्यवस्था में तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है और उन्हें लिया जा सकता है। हमारे पास साल 2009 और 2014 के तात्कालिक उदाहरण हैं जहां अंतरिम बजट में टैक्स दरों में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए थे।
अंतरिम बजट किसी भी सरकार के लिए एक मौका होता है जिसके माध्यम से वह अपने पांच वर्षों के प्रदर्शन का लेखा-जोखा जनता के समक्ष रखती है। इसके माध्यम से सरकारें भविष्य की नीतियों पर अपने दृष्टिकोण को भी रेखांकित करती है। ऐसे ही श्री पीयूष गोयल के बजट भाषण को देखा जाना चाहिए।
मैं यहां पिछले पांच वर्षों के प्रदर्शन और अंतरिम बजट में भविष्य की दिशा का विस्तार और वर्णन करने का प्रयास कर रहा हूं।

राजनीतिक रूझान

बजटीय प्रावधानों, कर नीति और प्रशासनिक कदमों के माध्यम से पिछले पांच वर्षों का राजनीतिक रूझान एक ऐसी व्यवस्था बनाने की ओर रहा है जो निर्णायक फैसले लेने में सक्षम और भ्रष्टाचार से मुक्त है। पिछलें पांच वर्षो के आर्थिक सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को ठोस स्वरूप दिया है, इसकी क्षमता को उजागर किया है और हमें एक आर्थिक शक्ति के तौर पर विश्व में स्थापित किया है। भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गया है और एक ऐसा राष्ट्र के रूप में सामने आ रहे है, जहां व्यापार करना आसान हुआ है। प्रधानमंत्री के नेतृत्व ने भारत को एक निर्णायक सरकार प्रदान की है जो कठिन निर्णय लेने में भी सक्षम है।

सुधार

पिछले पांच सालों में विकास की गति को बढ़ाने के उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण सुधारों को लागू किया गया, और उच्च विकास दर हासिल कर इसका प्रयोग देश की गरीब जनता, ग्रामीण इलाकों, कृषि क्षेत्र और बुनियादी ढांचे के निर्माण में किया गया। वहीं इस दौरान करदाताओं को भी बड़ी राहत प्रदान की गई। सरकार ने भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों को अपनाते हुए पारदर्शी तरीके से काम किया, जिसमें सरकारी कामकाज में अनुज्ञा और अनुमोदन को समाप्त करना, और अनुबंध, लाइसेंस और प्राकृतिक संसाधनों के मामलों में विवेकपूर्ण निर्णय लेना शामिल है। ऐसे ही डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के माध्यम से भुगतान कर जनता को पूर्ण लाभ पहुंचाने और राज्यों के सशक्त करने का काम भी किया गया।

सरकार के प्रमुख सुधारों में जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण कदम शामिल हैं, जिसके माध्यम से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों की प्रक्रिया में मानवीय भागीदारी को सीमित किया गया। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर दोनों की दरों में कमी के कारण करदाताओं की संख्या में विस्तार स्पष्ट नजर आता है। सरकार ने बैंकिंग प्रणाली को पुनर्जीवित करने के लिए बड़ा निवेश किया है, जो पिछली सरकारों की गलत नीतियों के कारण दबाव के दौर से गुजर रहा था। हमारी सरकार ने इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड लागू करने के साथ ही प्रमुख ऋण योजनाएं जैसे मुद्रा ऋण, कम लागत वाले बीमा, पेंशन योजना और एमएसएमई के वित्तपोषण के लिए जरूरी कदम उठाए, जिससें सभी प्रमुख बैंकिंग सेक्टरों में सुधार हुआ है। विमुद्रीकरण उच्च-नकदी वाली अर्थव्यवस्था पर एक बड़ा हमला था।

नकदी का चलन हमारे तंत्र में काले धन, कर चोरी और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं को बढ़ावा दे रहा था, जिस पर विमुद्रीकरण के बाद काफी हद तक लगाम लगाने का प्रयास हमारी सरकार ने किया। वहीं विमुद्रीकरण ने हमारी अर्थव्यवस्था को औपचारिकता प्रदान करने का भी काम किया। विमुद्रीकरण के बाद कर संग्रह में अच्छी खासी बढ़त देखने को मिली है और वहीं अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण की दिशा में भी यह एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है। रिजर्व बैंक के संदर्भ में भी जरुरी कदम उठाए गए, जिनकी मांग लंबे समय से की जा रही थी। आधार द्वारा प्रदान की गई विशिष्ट पहचान संख्या एक महत्वपूर्ण सुधार है जो केवल भारत के कुछ लोगों के लिए ही अजीब है। इसमें भारत की 99% आबादी शामिल किया जा चुका है।
सामाजिक क्षेत्र में सुधार जैसे कि वित्तीय समावेशन, हर परिवार को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ना, हर घर को बिजली, हर घर को रसोई गैस, हर घर में एक शौचालय को पिछले पांच वर्षों में देखा गया है।

हमारी नीतियों की बदौलत भारत एफडीआई का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता बन गया है। राजमार्गों, बंदरगाहों, हवाई अड्डों और नागरिक उड्डयन, बिजली, स्मार्ट शहरों, मेट्रो सिस्टम, बेहतर शहरी सुविधाओं में सुधार स्पष्ट देखा जा सकता है।

7वें केंद्रीय वेतन आयोग, ओआरओपी के कार्यान्वयन और न्यू पेंशन स्कीम में किए गए सुधारों के माध्यम से सरकारी कर्मचारियों, सशस्त्र बलों और अर्ध-सैन्य बलों को लाभ हुआ है।

आर्थिक आंकड़े

भारत की आर्थिक स्थिरता में निर्विवाद रूप से साल 2014 से 2019 का समय इतिहास में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला समय कहा जा सकता है। इन पांच साल की अवधि के दौरान जीडीपी की वृद्धि दर लगभग 7.5% रहने का अनुमान है। वही मुद्रास्फीति 4% के भीतर रखने में हम कामयाब रहे। पिछले पांच वर्षों में राजकोषीय घाटा यूपीए-2 सरकार के 5.3% से गिरकर 3.7% हो गया है। हम चाहते है कि पांच सालों के बाद यह आकंड़ा 3.4% हो। हालांकि हम 3.3% का लक्ष्य लेकर चले थे, लेकिन मौजूदा बजट की घोषणाओं को देखते हुए राजकोषीय घाटा 3.4% रहने का अनुमान लगाया जा रहा है। यूपीए-2 के पांच वर्ष के दौरान चालू खाते का घाटा 3.3% से 5.6% रहा, जो अब गिरकर 1.5% के औसत स्तर पर आ गया है। इसी तरह, जीडीपी के लिए बाहरी ऋण मार्च, 2018 तक 23.9% से नीचे आकर 20.5% हो गया है। विदेशी मुद्रा भंडार भी 396 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है, वहीं इन पांच सालों में यह आकंड़ा 425 बिलियन अमेरिकी डॉलर के उच्च स्तर को भी छू चुका है। इसलिए, यह स्पष्ट है कि भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में निवेश के लिहाज से एक उभरती हुई शक्ति के रूप में देखा जा रहा है।

भारतीय मध्यम वर्ग

श्री पीयूष गोयल ने बजट में एक महत्वपूर्ण घोषणा की है, जिसमें 5 लाख तक की आय वालें नागरिकों को टैक्स दायरें से बाहर रखा गया है। यह घोषणा मध्यम वर्ग को प्रभावी रूप से मजबूत करती है जिसकी क्रय शक्ति का विस्तार भारत के भविष्य की कुंजी है।

7वें केंद्रीय वेतन आयोग का तत्काल कार्यान्वयन, लंबे समय से लंबित ओआरओपी का निपटारा, नई पेंशन योजना में सुधार, उद्यमियों को मुद्रा योजना के तहत करोड़ों का ऋण, मध्यम आय वर्ग के लिए आवास सब्सिडी का प्रावधान, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में राहत और यूपीए द्वारा दोहरे अंकों में छोड़ी गई मुद्रास्फीति को 2% पर सीमित रखा, मध्यम वर्ग के लिए यह सभी कदम राहत लेकर आते है।

हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने हर बजट में मध्यम वर्ग को राहत देने का काम किया है। इस दौरान टैक्स छूट की सीमा को 2 लाख से 2.5 लाख किया गया। इसके बाद, स्लैब में बदलाव किए बिना, 3 लाख तक की आय वाले नागरिकों टैक्स छूट के दायरे में लाया गया। ऐसे ही 3 से 5 लाख तक की आय वाले लोगों के लिए कर दर को घटाते हुए 10% से 5% किया गया और आज इस श्रेणी को पूरी तरह छूट दी गई है। यदि इसमें आयकर अधिनियम के तहत अन्य कर राहतें को इसमें जोड़ दिया जाता है, तो इन लाभार्थियों की संख्या में वृद्धि ही होती है। आवास ऋण पर ब्याज दर को 1.5 से बढ़ाकर 2 लाख किया गया। ऐसे ही धारा 80 C के तहत मिलने वाली छूट को 1 लाख से बढ़ाकर 1.5 लाख किया गया।

सरकार का मानना है कि वेतनभोगी कर्मचारी चाहे वह सरकारी तंत्र से जुड़ा हो या फिर निजी क्षेत्र से टैक्स देने वाला एक ईमानदार समूह हैं। उनके पूरे कर को स्रोत पर ही काट लिया जाता है। इसलिए पिछले साल सरकार ने ऐसे कर्मचारियों को राहत देते हुए रु 40,000 का स्टैंडर्ड डिडक्शन देने की बात कही थी और इस साल यह लाभ रु 50,000 तक बढ़ाया जा रहा है। वरिष्ठ नागरिकों को स्वास्थ्य देखभाल, कर भुगतान और बीमा पर मिलने वाले लाभों की सीमा भी अधिक है। इस प्रकार अगर भारत के नियो-मिडिल क्लास और मिडिल क्लास को दिए गए इन सभी लाभों को जोड़ दिया जाए, तो लगभग 8 लाख कमाने वाले नागरिक पर वर्तमान समय में न के बराबर टैक्स देनदारी हैं।

जैसे-जैसे कर आधार बढ़ता है, वैसे—वैसे सरकार की क्षमताओं में भी वृद्धि होती है।

जीएसटी को 19 महीने पहले लागू किया गया था। इसके लागू होने के बाद टैक्स दरों में भारी कमी देखी गई है, इन टैक्सों की उच्चतम दर जो 31% थी, आज 18%, 12% और 5% दायरे में सिमट कर रह गई है। इतिहास में किसी भी सरकार के पांच साल के कार्यकाल के दौरान टैक्स दरों में कमी और मध्यम वर्ग को राहत की बात, दोनों एक साथ कम ही देखने को मिलता है। टैक्स दरों में कम के साथ ही इसका आधार बढ़ा है और वहीं टैक्स संग्रह का आकंड़ा भी उत्साहजनक है, जो हमारी सरकार के पांच वर्षों के कार्यकाल की प्रमुख उपलब्धि मानी जा सकती है। यह संभव हुआ है क्योंकि हमने एक भ्रष्टाचार विरोधी सरकार चलाने का साहस दिखाया और गैर कानूनी तरीकों से होने वाले कामों को और अधिक कठिन बना दिया है।

यूपीए सरकार के दौरान दोहरे अंकों में पहुंची मुद्रास्फीति को हमने 4% के आस-पास सीमित रखा, जिसके कारण ब्याज दरों में कमी आई है, जिससे मकान एवं अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए ऋण लेने वालों को राहत मिली है।

हाल के एक वैश्विक अध्ययन से पता चला है कि भारत के मध्यम वर्ग का दायरा साल 2005 में 18% था, जो साल 2015 में बढ़कर 29% हो गया और साल 2025 तक यह आंकड़ा 44% को छू सकता हैं। इसलिए हम चाहते हैं कि मध्यम वर्ग के लिए हमारी यह दिशा न केवल जारी रहे, बल्कि इस वर्ग को भविष्य में और अधिक समृद्धि बनाया जाए।

आधारभूत ढांचा

आधारभूत ढांचा जाति, पंथ या धर्म को मान्यता नहीं देती है। यह एक ऐसी सुविधा है जो राज्य सभी को प्रदान करता है। हम आज दुनिया के सबसे तेज राजमार्ग निर्माण वाले देश माने जा रहे हैं। सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में हमारे बंदरगाह अपनी क्षमता का विस्तार कर रहे है और लाभ कमा रहे है। नागरिक उड्डयन के मोर्चे पर, हम पहले से ही 100 कार्यात्मक हवाई अड्डों के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती नागरिक उड्डयन अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं। हमारे राष्ट्रीय अंतर्देशीय जलमार्गों का प्रभावी उपयोग किया जा रहा है। भारतीय रेलवे न केवल प्रत्येक दिन अपना विस्तार कर रहा है, बल्कि अपनी सेवाओं और गुणवत्ता में भी सुधार कर रहा है। ऊर्जा क्षेत्र का विस्तार जारी है, जिससे हर घर बिजली के लक्ष्य को पूरा किया जा सके। गैर-पारंपरिक ऊर्जा पर भी हमारा जोर, जो अब परिणाम देने लगा है। पिछले पांच वर्षों के प्रत्येक बजट ने बुनियादी ढांचे पर व्यय का विस्तार किया है। अंतरिम बजट भी उसी दिशा को बनाए रखने में कामयाब हुआ है।

गरीब

हमारी सरकार को गांधी जी के उस मंत्र द्वारा निर्देशित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि “सबसे गरीब और सबसे कमजोर आदमी का चेहरा याद करें जिसे आपने देखा होगा, और अपने आप से पूछें, क्या आपके द्वारा उठाया गया कदम उसके काम का है या नहीं? क्या वह इसके द्वारा कुछ हासिल करेगा?
सरकार ने उपरोक्त मंत्र को महत्व देते हुए, पहले ही दिन से इस दिशा में काम किया। भारत के वित्तीय समावेशन कार्यक्रम ‘प्रधानमंत्री जन धन योजना’ को विश्व स्तर पर मान्यता दी गई है। विशिष्ट पहचान ने यह सुनिश्चित किया कि सरकारी सहायता सीधे गरीबों तक पहुंचे और इसके दुरुपयोग से बचा जा सके। इसमें खर्च होने वाले पैसे का लाभ गरीबों को मिले। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन बीमा योजना, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना सभी इस समावेशी कार्यक्रम का विस्तार है। शहरी और ग्रामीण आवास योजनाओं ने यह सुनिश्चित किया है कि 2022 तक भारत के हर परिवार के सिर पर छत हो।

भारत की आबादी के एक बड़े हिस्से को सस्ते राशन के लिए सबसे बड़ा आवंटन करके भोजन का अधिकार सुनिश्चित किया गया है। मनरेगा पर वास्तविक खर्च को दोगुना करने से यह सुनिश्चित हो रहा है कि ग्रामीण बेरोजगारी को सीमित कर, ग्रामीण इलाकों में रहने वाले नागरिकों को आजीविका का स्रोत मिल सके। थोड़े समय में जीवन के अधिकार को सम्मानजनक बनाने के लिए, सरकार ने सुनिश्चित किया कि भारी संख्या में ग्रामीण घरों को शौचालय का निर्माण हो। बीपीएल परिवार रसोई गैस अपना रहे हैं। हर इच्छुक घर को बिजली से जोड़ा गया है।

पिछले पांच वर्षों में भारत के श्रमिक वर्ग के लिए बोनस, ग्रेच्युटी और कई अन्य लाभों में उदारीकरण की नीति को देखा गया है। उसी दिशा में श्रमिकों के लिए मासिक रु 3000 की पेंशन सुनिश्चित करने वाली प्रमुख योजना भी है। प्रत्येक असंगठित क्षेत्र के श्रमिक को रु 3,000 मासिक पेशन का प्रावधान किया गया है, जिसके लिए कर्मचारी और सरकार एक समान योगदान देंगे। प्रभावी रूप से, यह सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए और भारत को अधिक पेंशनभोगी समाज बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

शैक्षिक संस्थानों और नौकरियों में गैर-आरक्षित वर्ग को आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण प्रदान करने का फैसला लिया गया है। आयुष्मान भारत को विश्व स्तर पर मान्यता दी गई है। इसके तहत भारत की 40% आबादी को 5 लाख का सालाना स्वास्थ्य लाभ मिल सकेगा। अंत्योदय कार्यक्रम के तहत भारत के 115 कम विकसित जिलों की पहचान कर उनका विकास किया जा रहा है।

परंपरागत रूप से, इस देश के गरीबों को आकर्षक नारे दिए गए, जिनका प्रभाव अल्पकालिक था और जिसका कोई स्थायी अस्तित्व नहीं था। जैसा कि नोबेल पुरस्कार विजेता गैरी बेकर ने बताया कि गरीबी का कारण यह नहीं है कि गरीब अमीरों से कम सक्षम होते हैं, बल्कि गरीब इसलिए गरीब होता है क्योंकि उनका ज्यादातर वक्त रोज़मर्रा की तंगी से निपटने में ही चला जाता है, उसके सामने केवल अपने अस्तित्व को बचाए रखने की मजबूर होती है।
भारत के गरीबों को केवल नारों का लाभ मिला, लेकिन आज उनके पास संसाधनों पहुंच रहे है, जिसके चलते यह वर्ग भारत के नियो मध्यम वर्ग में शामिल होने का प्रमुख दावेदार बन गया है।

कृषि

पिछले साल बजट में सरकार ने घोषणा की थी कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू की जाएंगी और हर किसान अपनी इनपुट लागत से 50% अधिक पाने का हकदार होगा। प्रो. स्वामीनाथन ने स्वयं सरकार के फैसले की सराहना की है। दूसरों ने केवल इसका वादा किया था, हमारी सरकार ने इसे करके दिखाया। हालांकि, कुछ राज्यों में खरीद प्रणाली की अपर्याप्तता को देखते हुए कई किसानों को इसका पूरा लाभ नहीं मिला और उन्हें अपनी उपज को कम कीमतों पर बेचना पड़ा। सरकार ने ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए हैं। हमनें कृषि ऋण को बढ़ाया है, फसल बीमा योजना को सुनिश्चित किया है, सिंचाई में निवेश बढ़ाया है और यह हमारी अर्थव्यवस्था की मांग है कि भारतीय किसान जो हमें अधिशेष उत्पादन देता है वह और अधिक समृद्धि बने।

किसान कल्याण जैसे कार्यक्रम और अधिक इंतजार नहीं कर सकते। इस दिशा में एक अन्य महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सरकार ने बजट में छोटे और सीमांत किसानों को रु 6000 की आर्थिक सहायता देने का ऐलान किया है। यह हमारे खाद्य उत्पादकों के आर्थिक सशिक्तकरण के लिए एक बड़ा कदम साबित होगा। इसके चलते वित्त वर्ष 2018-19 में सरकारी खर्चों पर अतिरिक्त भार पड़ेगा और राजकोषीय घाटे के हमारे अनुमानों को भी यह निर्णय प्रभावित करेगा, लेकिन हम एफआरबीएम समिति की सिफारिशों के अनुसार शानदार पथ पर बने रहने के लिए आश्वस्त हैं। भारतीय किसान की क्रय शक्ति बढ़ने वाले इस प्रावधान पर होने वाले खर्च की तुलना में भविष्य में इसके शानदार असर हमारी अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलेगा।

भविष्य का लक्ष्य

भविष्य में भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य है। अगले दशक के मध्य तक हम इसे हासिल कर लेंगे और उसके बाद अर्थव्यवस्था के उस आकार को दोगुना करने का लक्ष्य रखेंगे। वर्तमान विकास दर के साथ हम इसे प्राप्त करने के लिए सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि हमारी इस प्रतिबद्धता का लाभ हर भारतीय हो और यह विकास केवल कुछ विशेषाधिकार प्राप्त राजवंशों तक ही सीमित न रह जाए। हम एक ऐसे भारत की परिकल्पना करते हैं जहां गरीबी दूर हो, भारत के पूर्वी क्षेत्र देश के अन्य हिस्सों के साथ बढ़े, ग्रामीण भारत में शहरी जैसी सुविधाएं हों, और औपचारिक क्षेत्र में महिला के लिए रोजगार के अवसर तेजी से बढ़े। खाद्य प्रसंस्करण, स्वच्छ ऊर्जा, स्वास्थ्य देखभाल, विश्व स्तरीय शैक्षणिक संस्थानों, पर्यटन की क्षमता को बढ़ाने, वैश्विक गुणवत्ता वाले बुनियादी ढांचे, भारत को इलेक्ट्रॉनिक निर्माण में अग्रणी बनाने, वस्त्र और परिधान का एक प्रमुख केंद्र बनाने जैसे मुद्दों पर काम किया जा रहा है, जिससे भविष्य की चुनौतियां का सामना किया जा सके हैं। जैविक खेती एवं गैर-पारंपरिक ऊर्जा पर ध्यान देने के साथ ही शहरों के आधुनिकीकरण और नवीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

हम अन्य तुलनीय अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले तेजी से बढ़ रहे हैं। हमें अपने प्रदर्शन पर गर्व है। फिर भी हम अधीर हैं। हम दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की अपनी वर्तमान स्थिति से भी तेजी से बढ़ना चाहते हैं, ताकि हम छूटे हुए ऐतिहासिक अवसरों को भी प्राप्त कर सकें।

अंत में एक प्रतिक्रिया

हाल ही में कुछ लोगों द्वारा विशेष तौर पर दो मुद्दों पर टिप्पणियां की गई हैं। पहला अर्थव्यवस्था में रोजगार सृजन से संबंधित है और दूसरा जीडीपी पर विमुद्रीकरण के प्रभाव पर।

पिछले पांच वर्षों में औसतन 7.5% जीडीपी वृद्धि देखी गई है। यदि मुद्रास्फीति का आंकड़ा इसमें जोड़ा जाता है, तो वृद्धि दर औसतन 11.5 से 12% के बीच होगी। क्या यह कल्पना करना संभव है कि नियंत्रित मुद्रास्फीति के बावजूद इतनी उच्च वृद्धि दर के बाद भी देश में किसी प्रकार का कोई रोजगार सृजन नहीं हुआ होगी। इपीएफओ और अन्य आंकड़े रोजगार सृजन की ओर एक विस्तृत संकेत देते है। यदि कोई रोजगार सृजन नहीं हुआ है, जैसाकि कथित है, तो देश में तार्किक रूप से एक महान सामाजिक अशांति होनी चाहिए थी, लेकिन विगत पांच वर्ष एक भी बड़े विरोध प्रदर्शन के बिना ही बीत गए।

जीडीपी विकास पर विमुद्रीकरण के तात्कालिक प्रभाव पर विश्व स्तर पर कोई मापदंड़ स्थापित नहीं थे। पूर्व प्रधानमंत्री का यह कथन कि ‘इससे जीडीपी में 2% की गिरावट आएगी’ ने सरकार के आलोचकों की कल्पना पर कब्जा कर लिया। साल 2016-17 और 2017-18 के लिए न तो मूल डेटा और न ही पहले संशोधन ने यह साबित किया। जब भारत में एक बड़ी समानांतर अर्थव्यवस्था थी, तो हम सभी को बताया गया था कि हमारे विकास के आंकड़े जीडीपी के विकास आंकड़ों को पूर्णत: परिभाषित नहीं करते हैं, क्योंकि औपचारिक अर्थव्यवस्था के बाहर बहुत सारी गतिविधि होती है। जब विमुद्रीकरण के फैसले ने पूरी नकदी को बैंकिंग प्रणाली में जमा करने का साहस दिखाया और भविष्य के लेनदेन का लेखा-जोखा रखने योग्य बनाया, तो तार्किक रूप से जीडीपी को पोस्ट-डिमोनेटाइजेशन बढ़ाना ही था। वहीं विमुद्रीकरण का प्रभाव केवल क्षणिक हो सकता है ऐसा सरकार हमेशा कहती रही है। वर्तमान आंकड़े इसे निर्णायक रूप से स्थापित करते है। साल 2016-17 और 2017-18 के दौरान प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में उच्च कर संग्रह ही इस आंकड़े को अब और आगे बढ़ाएगे। अर्थव्यवस्था का विस्तार तब तक संभव नहीं है, जब तक कर संग्रह का दायरा न बढ़ाया जा सके। विकास के आंकड़े अनुमान पर आधारित नहीं होते हैं, कर संग्रह ही वास्तविक आंकड़े को परिभाषित करता है।

(लेखक केंद्रीय मंत्री हैं)