लोकमान्य तिलक ने देशवासियों में आत्मविश्वास जगाया : नरेंद्र मोदी

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प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 29 जुलाई को अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के दौरान कहा कि हमारी यह भारत-भूमि बहुरत्ना वसुंधरा है। जैसे संतों की एक महान परंपरा हमारे देश में रही, उसी तरह से सामर्थ्यवान मां-भारती को समर्पित महापुरुषों ने, इस धरती को अपना जीवन आहुत कर दिया, समर्पित कर दिया। एक ऐसे ही महापुरुष हैं लोकमान्य तिलक, जिन्होंने अनेक भारतीयों के मन में अपनी गहरी छाप छोड़ी है। हम 23 जुलाई को तिलक जी की जयंती और 1 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि में उनका पुण्य स्मरण करते हैं।

श्री मोदी ने कहा कि लोकमान्य तिलक साहस और आत्मविश्वास से भरे हुए थे। उनमें ब्रिटिश शासकों को उनकी गलतियों का आईना दिखाने की शक्ति और बुद्धिमत्ता थी। अंग्रेज़ लोकमान्य तिलक से इतना अधिक डरे हुए थे कि उन्होंने 20 वर्षों में उन पर तीन बार राजद्रोह लगाने की कोशिश की और यह कोई छोटी बात नहीं है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि लोकमान्य तिलक ने देशवासियों में आत्मविश्वास जगाया और नारा दिया था – ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम लेकर के रहेंगे।’ आज ये कहने का समय है स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम उसे लेकर रहेंगे। हर भारतीय की पहुंच सुशासन और विकास के अच्छे परिणामों तक होनी चाहिए। यही वो बात है जो एक नए भारत का निर्माण करेगी।

श्री मोदी ने कहा कि मैंने पिछली बार भी आग्रह किया था और जब लोकमान्य तिलक जी को याद कर रहा हूं तब फिर से एक बार आपसे आग्रह करूंगा कि इस बार भी हम गणेश उत्सव मनाएं, धूमधाम से मनाएं, जी-जान से मनाएं लेकिन इको-फ्रेंडली गणेश उत्सव मनाने का आग्रह रखें। गणेश जी की मूर्ति से लेकर साज-सज्जा का सामान सब कुछ इको-फ्रेंडली हो और मैं तो चाहूंगा हर शहर में इको-फ्रेंडली गणेश उत्सव की अलग स्पर्धाएं हों, उनको इनाम दिए जाएं और मैं तो चाहूंगा कि MyGov पर भी और नरेंद्र मोदी एप्प पर भी इको-फ्रेंडली गणेश-उत्सव की चीज़े व्यापक प्रचार के लिए रखी जाएं। मैं ज़रूर आपकी बात लोगों तक पहुंचाऊंगा।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि तिलक के जन्म के 50 वर्षों बाद ठीक उसी दिन यानी 23 जुलाई को भारत-मां के एक और सपूत का जन्म हुआ, जिन्होंने अपना जीवन इसलिए बलिदान कर दिया ताकि देशवासी आज़ादी की हवा में सांस ले सके। मैं बात कर रहा हूं चंद्रशेखर आज़ाद की। भारत में कौन-सा ऐसा नौजवान होगा जो इन पंक्तियों को सुनकर प्रेरित नहीं होगा:

‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है’

इन पंक्तियों ने अशफाक़ उल्लाह खान, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे अनेक नौज़वानों को प्रेरित किया। चंद्रशेखर आज़ाद की बहादुरी और स्वतंत्रता के लिए उनका जुनून, इसने कई युवाओं को प्रेरित किया। आज़ाद ने अपने जीवन को दांव पर लगा दिया, लेकिन विदेशी शासन के सामने वे कभी नहीं झुके।

श्री मोदी ने कहा कि आषाढ़ी एकादशी जो इस बार 23 जुलाई को थी उस दिन को पंढरपुर वारी की भव्य परिणिति के रूप में भी मनाया जाता है। पंढरपुर महाराष्ट्र के सोलापुर जिले का एक पवित्र शहर है। आषाढ़ी एकादशी के लगभग 15-20 दिन पहले से ही वारकरी यानी तीर्थयात्री पालकियों के साथ पंढरपुर की यात्रा के लिए पैदल निकलते हैं। इस यात्रा, जिसे वारी कहते हैं, में लाखों की संख्या में वारकरी शामिल होते हैं। संत ज्ञानेश्वर और संत तुकाराम जैसे महान संतों की पादुका, पालकी में रखकर विट्ठल-विट्ठल गाते, नाचते, बजाते पैदल पंढरपुर की ओर चल पड़ते हैं। यह वारी शिक्षा, संस्कार और श्रद्धा की त्रिवेणी है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि ज्ञानेश्वर, नामदेव, एकनाथ, रामदास, तुकाराम- अनगिनत संत महाराष्ट्र में आज भी जन-सामान्य को शिक्षित कर रहे हैं। अंधश्रद्धा के खिलाफ लड़ने की ताकत दे रहे हैं और हिंदुस्तान के हर कोने में यह संत परंपरा प्रेरणा देती रही है। चाहे वो उनके भारुड हो या अभंग हो हमें उनसे सदभाव, प्रेम और भाईचारे का महत्वपूर्ण सन्देश मिलता है। अंधश्रद्धा के खिलाफ श्रद्धा के साथ समाज लड़ सके इसका मंत्र मिलता है। ये वो लोग थे जिन्होंने समय-समय पर समाज को रोका, टोका और आईना भी दिखाया और यह सुनिश्चित किया कि पुरानी कुप्रथाएं हमारे समाज से खत्म हों और लोगों में करुणा, समानता और शुचिता के संस्कार आएं।