राजनीतिक स्थिरता, निर्णायक नेतृत्व और एक स्पष्ट जनादेश का सीधा संबंध है विकास के साथ…

| Published on:

अरुण जेटली

स्वाधीनता के बाद भारत के आर्थिक अध्ययन को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है, जिसमें साल 1991 इस विभाजन का केंद्र बिन्दु रहा। विनियमित अर्थव्यवस्था ने चालीस वर्षों तक भारत की विकास की गति को प्रतिबंधित किया। 1951-52 से 1990-91 तक, भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सालाना 4.2% की वृद्धि हुई। प्रत्येक वर्ष प्रति व्यक्ति आय में 2% की वृद्धि हुई। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 1969-70 से 1990-91 तक लगभग दो दशक के दौरान 8.2% की दर से बढ़ा। केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा 1980-81 से 1990-91 तक दस साल की अवधि के लिए औसतन 6.5% था। उदारीकरण की शुरूआत से पहले बाहरी ऋण हमारी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 28.7% था।

अर्थव्यवस्था के उदारीकरण ने न केवल जीडीपी विकास दर में सुधार किया, बल्कि लाखों लोगों को गरीबी के चंगुल से भी बाहर निकाला और बड़ी संख्या में भारतीयों के जीवन स्तर में सुधार देखा गया।

उदारीकरण के बाद, विभिन्न प्रधानमंत्री के अधीन रही सरकारों के जीडीपी विकास और मुद्रास्फीति के आंकड़ों से संबंधित विश्लेषण से कई महत्वपूर्ण आकंड़े सामने आते है। यह इस प्रकार है:

.अवधि                                     जीडीपी वृद्धि                    मुद्रास्फीति                      प्रधानमंत्री

.1991-92 से 1995-96                5.1                                        10.2                          पी.वी.नरसिम्हा राव

.1996-97 से 1997-98                5.8                                       8.1                        एच.डी.देवेगौड़ा / आई.के.गुजराल

.1998-99 से 2003-04               5.9                                       5.4                          अटल बिहारी वाजपेयी

.2004-05 से 2008-09              6.9                                        5.7                            मनमोहन सिंह

.2009-10 से 2013-14               6.7                                          10.1                          मनमोहन सिंह

.2014-15 से 2018-19                7.3                                          4.6                           नरेंद्र मोदी

 

उपरोक्त आकंड़ों का विश्लेषण करते समय, दो महत्वपूर्ण तथ्यों को ध्यान में रखना होगा। पहला, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पांच वर्षों के कार्यकाल के दौरान जीडीपी विकास दर में 7.3% की औसत वृद्धि अपने पूर्ववर्तियों प्रधानमंत्रियों की तुलना में बहुत अधिक है। और उच्च विकास दर का प्रभाव पड़ता है। दूसरे, यूपीए-2 के पांच वर्षों के दौरान, मुद्रास्फीति की दर 12.2% और 8.4% के बीच झूलती रही थी। 2013-14 में, यूपीए सरकार ने 9.4% की वार्षिक मुद्रास्फीति के साथ सत्ता को हमारे हवाले किया। इस आंकड़े को नियंत्रित करने में समय लगा। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पांच वर्षों के कार्यकाल में मुद्रास्फीति का यह आंकड़ा क्रमश: 5.9%, 4.9%, 4.5%, 3.6% और 3.9% रहा है। वर्तमान एनडीए सरकार के पहले वर्ष में इसे नियंत्रण में लाने के साथ ही हम लगातार इस दिशा में काम करते रहे। मोदी सरकार ने मुद्रास्फीति की सीमा के रूप में 4% +/- 2% का सांविधिक मुद्रास्फीति लक्ष्य तय किया।
जब प्रधानमंत्री मोदी सत्ता में आए, तो भारत को जीडीपी के मामले में दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था माना जाता था। वर्तमान में, पांचवीं, छठी और सातवीं अर्थव्यवस्था के तौर पर क्रमश: यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और भारत के बीच बहुत ही संकीर्ण अंतर हैं। मुद्रा मूल्यों का मामूली उतार-चढ़ाव अर्थव्यवस्थाओं के आकार को बदल देता है। बेशक, भारतीय अर्थव्यवस्था को अगले वर्ष 7.5% की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप भारत अगले वित्तीय वर्ष के अंत तक दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर काबिज हो जाए तो किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

यह कहने की जरूरत नहीं है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान भारत का राजकोषीय ढांचा किसी भी पूर्ववर्ती अवधि की तुलना में सबसे अच्छा रहा है। मैकिन्से इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2015 में भारत के मध्यवर्ग का आकार साल 2005 के 14% से बढ़कर 29% हो गया, और यह निरंतर बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि साल 2025 में यह आकंडा 44% हो जाएगा।

ग्रामीण भारत में पिछले पांच वर्षों में संसाधनों के हस्तांतरण के साथ, ग्रामीण क्षेत्रों में भी एक बड़ा आकांक्षावादी वर्ग उभर रहा है।

यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि आने वाले दशकों में हमारे नागरिकों का सामाजिक स्तर और क्रय शक्ति कैसी होने वाली है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह अनुमानित प्रगति सही दिशा में चलती रहे, हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि भारत को इस दौरान एक निर्णायक नेतृत्व मिले, जो नीति निर्धारण की दिशा में स्थिरता और एक मजबूत सरकार देश को देने में कामयाब हो। कमजोर नेतृत्व के साथ एक अयोग्य गठबंधन जिसका भविष्य संदिग्ध हो, वह कभी भी इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता है।

भारत आज दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है। फिर भी हम 7 से 7.5% की विकास दर से संतुष्ट नहीं हैं। हम तेजी से अधीर हो रहे हैं और 8% के अवरोध को तोड़ना चाहते हैं। इन पांच सालों में हम व्यापार रैंकिंग में 142 वें स्थान से 77 वें स्थान पर पहुंच गए है। हमें अब पहले 50 स्थानों में अपनी जगह बनानी है।

अब सवाल यह है कि यदि भारत को यह लक्ष्य हासिल करने है, तो भारत का प्रधानमंत्री कौन होना चाहिए,? क्या कोई ऐसा व्यक्ति जो अपने सहयोगियों के हाथों विवश हो और जिसका समर्थन केवल एक आम प्रतिद्वंद्वी को हराने के लिए किया गया हो या फिर साल 2014 में एक स्पष्ट जनादेश के साथ सत्ता संभालने वाला प्रधानमंत्री जो राष्ट्र की आकांक्षाओं को पूरा कर सके।

                                                                                                                                                      (लेखक केंद्रीय वित्त मंत्री है)