विजयी हुआ भारत

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सुधा मलैया

भारतीय लोकतंत्र का 17वां महासमर 2019। अभूतपूर्व विजय, आशातीत सफलता। नायक से महानायक बने पातंजलि के अवतार नरेन्द्र दामोदरदास मोदी। लगातार दो चुनाव जीतकर, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समकक्ष खड़े हुए पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री। भारत के लिखित इतिहास के महानायकों- चंद्रगुप्त मौर्य और समुद्रगुप्त के समान भारत को विश्वगुरु बनने की राह पर ले जाने के लिये। 2014 में नरेन्द्र मोदी जिन्हें विपक्ष ने मौत का सौदागर, राक्षस, नरभक्षी, चोर, घमण्डी, साम्प्रदायिक आदि उपाधियों से विभूषित किया, विजय का अवतार बनकर उभरे थे। 2019 के चुनाव में वे देश के मान और स्वाभिमान, आन-बान-शान के प्रतीक बन गये। देश की ऊंचाई और मान, सरदार वल्लभ भाई पटेल की विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति जैसा ऊंचा करने के लिये। विश्व में भारत की साख बढ़ाने के लिये। इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णाक्षरों में भारत का नाम अंकित करने के लिये।

भारतीय लोकतंत्र में बदलाव की सबसे बड़ी क्रांति का सूत्रपात हो गया है। ‘मौसम बदलने लगा है, मोदी ने उसे छू भर दिया था, देश उनके साथ चलने लगा है।’ बदलाव जाति, धर्म, क्षेत्र से ऊंचे उठकर, देश के बारे में चिंतन करने की सोच का। तमाम गुण-दोषों के साथ हिन्दुत्व भारत की पहचान है, भारत के मान और स्वाभिमान का विषय है, लज्जा का नहीं, के पुनर्जागरण और इस विचार की स्वीकार्यता का। परिवर्तन, देश ही प्रथम है और सर्वोपरि है, यह सिद्ध करने का। मोदी जी ने ठीक कहा ‘विजयी भारत’ हुआ है। भारत ने स्वतंत्रता के पश्चात् प्रथम बार चुनावों में देशप्रेम का खुल कर इजहार किया और राष्ट्रवाद मुद्दा बना। देश के टुकड़े-टुकड़े करने के ख्वाब देखने वाले, देशद्रोही टुकड़े-टुकड़े गैंग को देश की जनता ने सिरे से नकार दिया। इस चुनाव में सभी दलों के धर्मनिरपेक्षता के नकाब उतर गये और हम हिन्दू हैं, हिन्दुत्व के समर्थक हैं यह बताने के लिये अनेक प्रकार की नौटंकियां देखने को मिलीं।

परिणाम आशानुरूप ही निकले। भाजपा की सरकार और मोदी जी का प्रधानमंत्री बनना सुनिश्चित था। किन्तु भाजपा 300 पार कर लेगी, यह विश्वास केवल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और नरेन्द्र मोदी जी को ही था। भाजपा के अच्छे-अच्छे समर्थकों, समर्पित कार्यकर्ताओ और पार्टी के दिग्गज नेताओं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, शुभचिंतक साधु-संतों, प्रभावी तंत्र-मंत्र अनुष्ठान करने वाले मंत्रसिद्ध स्वामियों को भी, अन्तर्मन से यकीन नहीं था कि भाजपा 300 पार करेगी। कम सीटें मिलने पर सौदेबाजी का ख्वाब देख रहे दलों के अरमानों को ध्वस्त करते हुए भाजपा ने अकेले अपने दम पर 303 सीटें प्राप्त कर के कमाल कर दिया। भाजपा की इस अद्भुत विजय के अनेक कारण हैं।

2014 में मोदी जी की आंधी चली थी। 2019 में मुखर नहीं होते हुए भी जनमानस के अंतर में अंदर ही अंदर देश भक्ति की लहर उमड़ रही थी। ऐसी, जो अपने वेग, गति और शक्ति में किसी भी सुनामी से अधिक शक्तिशाली थी। युद्धकाल के समान सारे भेदभाव भुलाकर देश की जनता ने विविधता में एकता का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। केवल और केवल एक ही विषय सर्वोपरि चर्चा व विचार का रह गया, देश के साथ कौन हैं और विरोध में कौन हैं? बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक तथा पायलट अभिनंदन की दो दिन में वापसी से राष्ट्रवाद व राष्ट्रप्रेम की अद्भुत धारा प्रवाहित हुई और जन्म हुआ उस ऐतिहासिक नारे का ’मोदी है तो मुमकिन है’, जो जनमानस के दिलो-दिमाग में घर कर गया। गली, चाैबारे, बाजार, हाट, पान की दुकानें, हाथ ठेले, चाट के खोमचे, कारपोरेट हाउसेस, स्टाॅक मार्केट, सभी जगह बस एक ही बात…। मोदी ब्राण्ड की भलीभांति पैकेजिंग व मार्केटिंग की गई। मोदी है तो देश सुरक्षित है। मोदी है तो देश का कद ऊंचा होगा। मतदाता ने मौन रहते हुए भी मन बना लिया।

कारण और भी थे। इस मूर्तिपूजक देश में मोदी को छोड़ कोई ऐसी मूर्ति न थी, जिसको मतदाता पूज सकता, और न किसी दल के पास कोई दृष्टि और विचार था, जिसे वे बेच सकते। विपक्ष के असंख्यात दलों में प्रधानमंत्री कौन होगा, यह प्रश्न अनसुलझा ही रहा। भोलीभाली जनता ने उसे गांव के अनुभवी बुजुर्ग की भांति खुद ही सुलझा लिया। विकल्पहीनता से विपक्ष इतना अधिक बौना सिद्ध हो गया कि जनता के पास मोदी के अलावा कुछ सूझा ही नहीं। नरेन्द्र मोदी एकमात्र विकल्प थे। वे मजबूरी नहीं जरूरी सिद्ध हुए। राहुल गांधी ऐसा कुछ भी नहीं कर सके, कुछ भी नहीं कह सके जो जनता को प्रभावित करता। उल्टा उनके बोलने मात्र से ही जनता इतनी गुस्सा हो गयी कि लोग सोशल मीडिया में, टी.वी. में घुस कर उनको थप्पड़ मारने की तकनीक पूछने लगे।

महागठबंधन, मोदी जी के शब्दों में महामिलावटी गठबंधन है, यह उसी दिन सिद्ध हो गया, जिस दिन सारे दलों ने कोलकाता में महागठबंधन रैली की। उस दिन देश समझ गया कि ये सारे तथाकथित देशरक्षक और संविधान संरक्षक दल मुखौटा लगाए हुए सत्ता के भूखे, भारत मां के भक्षक हैं और संविधान की धज्जियां उड़ाने को तैयार बैठे हैं। ये न कभी देश के हितचिंतक थे, न कभी होंगे। प्रधानमंत्री कुर्सी रेस के ये दावेदार, अपनी ढपली अपना राग बजाते रहे। वे चीख-चीख कर कहते रहे कि मोदी सरकार ने नोटबंदी, जी.एस.टी. आदि की भयंकर भूलें कीं, रोजगार के अवसर कम कर दिये, आतंकवाद पर काबू नहीं पाया और साम्प्रदायिक दुर्भाव फैलने दिया, लेकिन जनता ने इसका विश्वास नहीं किया।

राहुल गांधी गब्बर सिंह टैक्स से डराते रहे और जनता मोदी जी के पाले में जा कर निर्भय हो गई। नामदार चिल्लाते रह गए कि नीरव मोदी की जेब में जनता का पैसा डाल दिया, जनता ने मोदी के लिये दिलों के खजाने खोल दिये। बोफोर्स डील पर सत्ता से बाहर होने वाले राजीव गांधी के पुत्र रफायल सौदे को मुद्दा बनाते रहे, जनता ने सर्जिकल स्ट्राइक करके, देश का गौरव बढ़ाने वाले के पक्ष में रफायल की फाइल बंद कर दी। विपक्ष नोटबंदी से कतार में खड़े होने का दर्द याद दिलाते रहे, जनता ने इसे भुला कर, कतारबद्ध होकर मोदी के पक्ष में भरपूर मतदान किया। वह मुंह फुला-फुला कर नाटकीय अंदाज में प्रधानमंत्री को गाली देते रहे, जनता मोदी पक्ष में लामबद्ध होती गई। मोदी की सकारात्मक छवि के विरुद्ध राहुल गांधी की पप्पू वाली छवि से पूरे चुनाव में हाशिए पर खड़े मतदाता ये सवाल पूछते हुए नजर आए कि मोदी को नहीं चुनें तो क्या राहुल को चुनें? मोदी बनाम कौन, के प्रचार से भाजपा की राह आसान होती गई। निवर्तमान सांसद प्रत्याशी ने क्षेत्र में कुछ किया या नहीं, वह लोकप्रिय रहा या अलोकप्रिय, बिना प्रत्याशी का चेहरा देखे, और बगैर 5 वर्षों का हिसाब मांगे, जनता ने कमल का बटन दबा दिया। भाजपा की सभी सीटों पर केवल एक प्रत्याशी लड़ रहा था, नरेन्द्र दामोदरदास मोदी। भारतीय लोकतंत्र ने पहली बार अध्यक्षात्मक प्रणाली से देश का चुनाव लड़ा।

हर क्षेत्र में, हर वर्ग के लिए, किसानों गरीबों, युवाओं, महिलाओं को लोक कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से मोदी सरकार द्वारा मिली वित्तीय सहायता, जो भारत के इतिहास में पहले कभी नहीं दी गई, ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कांग्रेस के किसानों की कर्ज माफी के वादे की अपेक्षा मोदी जी द्वारा उनके खातों में प्रतिवर्ष 6000 रु. पहुंचाने वाली बात पर भरोसा किया। देश की महिलाएं मोदी के पक्ष में खड़ी हो गईं, क्योंकि उन्होंने समझा कि कैसे मोदी की उज्ज्वला योजना ने उनके जीवन में उजाला भरा। उन्हें अहसास हुआ कि घर-घर शौचालय बनवा कर, शर्मिंदगी के अहसास से उन्हें मुक्ति दिलाकर उनकी अस्मिता और सम्मान की रक्षा मोदी ने की। बरसात में चूती कच्ची छतें और सर्दी में कड़कड़ाती हुई ठंड से पक्की छत दे कर निजात मोदी जी ने दिलायी जो आज तक किसी प्रधानमंत्री ने नहीं सोची। पूरे देश में महिलाओं ने मुखर होकर, स्वयं तो मोदी जी को वोट दिया ही, परिवारजनों और नाते रिश्तेदारों पर भी उन्हें वोट देने का दबाव बनाया।

विपक्ष बोलता रहा कि मोदी ने बेरोजगारी के मुद्दे को दरकिनार कर दिया, किन्तु मोदी जी की युवाओं के लिये स्टार्टअप, कौशल उन्नयन तथा हस्तकौशल विकास योजना तथा व्यापार या उद्योग करने के लिये 25 लाख तक रुपये के ऋण आदि योजनाओं से युवा मोदी जी के दीवाने हो गये। नवम्बर में सम्पन्न विधानसभा चुनावों में कर्ज माफी के झूठे प्रलोभन में बह गए किसानों को भी अब कोई स्लोगन और प्रलोभन आकर्षित नहीं कर सका। कोई वादा उन्हें भरमा नहीं सका। न्याय के नाम पर दलितों को 72000 रुपए ललचा नहीं सके। न्याय की बात करके राहुल गांधी कठघरे में खड़े हो गये और स्वयं स्वीकार कर लिया कि 60 वर्ष तक कांग्रेस अन्याय करती रही?

विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को जिताने वाली जनता ने संसदीय चुनाव में मध्यप्रदेश में 1, राजस्थान में 0, छत्तीगढ़ में 2 सीटें देकर, बुरी तरह से रद्द कर दिया। तीनों राज्यों में अप्रत्याशित रूप से भाजपा को 65 में से 62 सीटें मिलीं। कांग्रेस के अनेक दिग्गज पराजित हुए। 5 माह में जो प्रदेश का बंटाधार कमलनाथ सरकार ने किया, जनता ने ब्याज सहित कांग्रेस से बदला ले लिया। प्रदेश के सारे राजा-महाराजा और दरबारी निपट गये।

उत्तरप्रदेश में जातीय समीकरण को ध्वस्त करते हुए भाजपा 62 सीटें जीतकर अपना गढ़ बचाने में कामयाब रही। अपने दम पर उत्तरप्रदेश जीतने का दम्भ भरने वाले राहुल गांधी अपनी सीट तक गंवा बैठे। स्मृति ईरानी राजनीतिक क्षेत्र में महानायिका बन गईं। किसी तरह सोनिया गांधी की सीट बच पायी। गंगाजल से आचमन करतीं, मंदिरों की दहलीजों पर माथा टेकतीं, महासचिव के रूप में कांग्रेस में शानदार एण्ट्री करने वाली और बड़े-बड़े कटु बोल बोलने वाली प्रियंका खान वाड्रा भयंकर अप्रिय सिद्ध हुईं।

अमित शाह ने अथक श्रम, परिश्रम और बुद्धि कौशल से, भाजपा के संकल्पित प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की टीम के साथ भाजपा की विजय का पथ प्रशस्त कर दिया। इस नेरेटिव ने कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’ और ‘अमित शाह है तो सम्भव है’, ने जनमानस पर पर्याप्त प्रभाव डाला। अमित शाह की जो छवि बनाई गई कि वे कुछ भी कर सकते हैं, कहीं की भी राज्य सरकार गिरा सकते हैं, बना सकते हैं। यहां तक कि वे पाकिस्तान में भी भाजपा सरकार बनाने में सक्षम हैं आदि प्रचार से एक ओर भाजपा ने धारणा की लड़ाई जीती तथा दूसरी ओर मनोबल के स्तर पर भाजपा ने विपक्ष को बुरी तरह पराजित कर दिया। रामायण के बालि के समान जो अपने दुश्मन की आधी शक्ति युद्ध से पहले ही हर लेता था, मोदी के आक्रामक प्रचार व लोकप्रियता ने विपक्ष की आधी शक्ति और पूरी बुद्धि हर ली गई। बजाए एकजुट होने के विपक्षी दल बुरी तरह बौखला गये। यूं भी विपक्ष के पास कहने और देने को कुछ नहीं था। ब्राण्ड ‘मोदी’ ने हर जगह काम किया। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में शिव सेना ने और बिहार में नीतिश कुमार ने भी मोदी जी के नाम से वोट मांगे।

पिछला चुनाव मोदी जी ने कांग्रेस के भ्रष्टाचार के विरोध में लड़ा था। किन्तु यह चुनाव उन्होंने अपने दम से, अपनी उपलब्धियों के आधार पर लड़ा और बेहतर जीत दर्ज की। जीत के बाद सेंट्रल हाॅल में दिये गये अपने भाषण में उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि वे सबको साथ लेकर विरोधियों को भी अपना मानकर, अल्पसंख्यकों का विश्वास जीत कर, पड़ोसी देशों को सहयोग कर के और दुश्मन का मुकाबला करते हुए भारत को उस मुकाम तक ले जाएंगे, जिसके लिये भारत देश हजार वर्षों से प्रतीक्षा में है। भारत अवश्य विजयी होगा क्योंकि इसी चुनाव ने सिद्ध किया भले ही भाषायें अनेक हों, देशप्रेम का भाव एक सा है। रंग भले ही बहुत सारे हों, तिरंगा सबका है। राहें अलग हो सकती हैं, किन्तु सबकी मंजिल शांति और विकास की है। कितने भी समाज हों, देश तो सबका एक है। और अब जब भारत में एकता का यह भाव पुष्ट होने लगा है तो श्रेष्ठता की ओर स्वयं अग्रसर हो गया है। ये चुनाव भारत के इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ है, जिसमें भारत अपने पुराने वैभव व गौरव के साथ विजयी हुआ है। सबका विश्वास जीतते हुए, सबका साथ लेते व देते हुए, सबका विकास करने के लिये।

(लेखिका भाजपा राष्ट्रीय प्रकाशन एवं पत्र-पत्रिकाएं विभाग की सदस्या हैं)