मोदी की विजय ’नये भारत’ के विचार की विजय है


Posted in:
21 Jun, 2019
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21 Jun, 2019

मोदी की अभूतपूर्व विजय पर अंतरराष्ट्रीय मीडीया के एक वर्ग की नाटकीय नकारात्मक प्रतिक्रिया स्वभाविक है। यह वह वर्ग है जिसका भारत की आत्मा और नये उभरते भारत के चरित्र से, उसके जन से कोई सरोकार कभी नहीं रहा। इसलिये इस प्रकार के जनादेश से भी वे भौंचक्के है। इस प्रजातन्त्रीय जनादेश को परिभाषित करने के लिए नई-नई व्याख्याएं गढ़ने का बुद्विवादी पराक्रम हो रहा है। कभी इसे विभाजनकारी ‘फण्डामेन्टलिज़म’ कभी हिन्दू राष्ट्र के नाम पर वोटो की गोलबंदी कभी राष्ट्रवाद व सर्जिकल स्ट्राईक्स के भावनात्मक परिणाम के रुप में रेखांकिंत करने का यत्न किया जा रहा है। इसका कारण यह है की इस ‘हिस्टीरीया कलब’ का अस्तित्व ही मोदी विरोध पर टीका था भारतीय का आधार ही समन्वय, एकीकरण, सहिष्णुता व समेकित हो कर जीना है, यह ऐसे वर्ग को या तो समझ ही नही आया या समझ कर भी नासमझ बनते हुए सेक्यूलर-लिबरल का दिखावा करने में जो प्रायोजित लाभ थे उनके छिंन जाने का भय था। कारण जो भी हो एजेंडा एक ही था मोदी के नाम पर, भारतीयता के नाम पर, हिन्दु बहु संख्या के नाम पर ‘डर’ को पैदा करना। ‘डर’ की मार्केटिंग करना ‘डर’ को समूहीकृत करके उसे राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संस्थागत करना। भारत को भय, भूख, भ्रष्टाचार से आगे ले जा कर विकास के नये भारत का सपना रचना यह मोदी का एजेंडा था व इस एजेंडे का विकृतिकरण कर के विभाजनकारी विचारधारा को हवा देना इस वर्ग का काम था। पिछले पांच वर्ष जहां मोदी ने तल्लीनता से ‘ट्रांसफोरमेटिव’ लक्ष्य पर काम किया वही इस नकारात्मक वर्ग ने नये उभरते आकांक्षावादी भारत के विचार को निराशावादी भारत में बदलने के लिए अपनी सारी शक्ति लगा दी। दुर्भाग्य से यह वर्ग विपक्ष का रणनीतिकार भी था यही कारण है कि विपक्ष का सारा प्रचार अभियान इस निराशावादी, नकारात्मक, विचारधारा से प्रभावित रहा इसी कारण जनता ने नकारात्मक विचारो को सिरे से खारिज कर दिया ओर सकारात्मकता को प्रचंड जनादेश दिया। भारत का नव मतदाता व महिला मतदाता ऐसे वर्ग थे जिन्होने नकारात्मकता सुनना भी स्वीकार नहीं किया। आशा और विश्वास इस वर्ग को आकृष्ट कर रहा था एक विश्वसनीय नेता के तौर पर नये भारत ने एक सक्रिय, आशा से भरा नेता तलाश करना था। 2014 में उनकी यह तलाश मोदी के रुप में दिखाई दी 2019 में इस तलाश को ‘सही तलाश’ होने का प्रमाण पत्र मिल गया। इसलिये भले ही कालबाह्य अर्थशास्त्री के तौर पर अमृत्य सेन इसे न समझ पाएं हो और केवल शक्ति की विजय मानते हो पर वास्तव में इन चुनावों में मोदी की विजय नये भारत की सकारात्मक विचार की विजय थी।
मोदी के नये भारत का विचार एक नयी आर्थिक अवधारणा पर खड़ा था जब उन्होने जीतने के बाद अपने उद्बोधन में कहा की अब भारत में दो ही जातियां होंगी एक गरीब और दूसरा गरीबो को गरीबी से बाहर निकालने में सहयोग करने वाली तो वह इस अनूठे मॉडल कि ओर इशारा कर रहे थे। इस मॉडल में सदियो से चली आ रही सर्वहारा और पुंजीपति की लड़ाई से ऊपर एक नई अवधारणा को प्रतिस्थापित किया गया है जहां उत्पादन के संबंध बेहद सामजस्यपूर्ण और सहयोग पर आधारित है गरीबो का सक्षमीकरण इस आर्थिक मॉडल का एक आधार बिन्दु है वही दूसरी ओर उद्यमशील वर्ग को विकास की सम्भावनाओं के आधार पर सक्षमीकृत और सशक्त बनाना इस मॉडल का दूसरा आधार बिन्दु है गरीबो को गरीबी से बाहर निकालने के लिये जिस ट्रांसफोरमेटिव इंडिया की बात हुई उसमें स्पीड, स्किल और स्केल के साथ जितना काम हुआ वह भारत और शायद विश्व के इतिहास में भी अभूतपूर्व है भारत ऐसा एक मात्र देश रहा होगा जहां प्रतिदिन 28675752 जनधन खाते खुलते गये 560 पंचायते ओ.डी.एफ. होती गई प्रत्येक दिन 1440 ग्राम पंचायते संचार माध्यमों से जुड़ रही थी तो 46377 करोड़ का सीधा लाभ खातो में पहुंच रहा था एक और प्रतिदिन 13021 घर प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत बन रहे थे तो 102731 उज्ज्वला गैस कनेक्षन देकर महिला के सम्मान और जीवन को आसांन बनाने का प्रयत्न किया जा रहा था इस प्रकार का ट्रांसफोरमेशन इस गति से और कहा हो रहा था। देश के करोड़ो लाभार्थियां ने यह जान लिया था कि यह सरकार कम से कम उन्हें गरीबी रेखा से उपर उठाने की नीयत तो रखती है। किसी भी बदलाव में समय लगता है पर बदलाव का ब्लूप्रिंट या मार्ग दिखाया जा चुका था और उस मार्ग को जनता की स्वीकृति 2019 में मिली। दूसरी ओर यह केवल संयोग नही था की विश्व बैंक ने भारत की अर्थव्यवस्था को सातत्य से बढ़ती हुई और लचीले पन पर आधारित आशावान अर्थव्यवस्था के तौर पर रेखांकिंत किया। ईज़ ऑफ बिजनेस और निवेश की सम्भावना में अग्रिणी होने का जो प्रयत्न भारत ने किया भले ही उसमे सफलता धीमी रही हो पांच, वर्षो में गत्यात्मकता जरुर रही। इसे उद्यमशील विश्व ने भी स्वीकार किया। ये सब सकारात्मक तथ्य नये भारत के नये आर्थिक विकास मॉडल के कारक तत्व थे जिन्होने भारत को विश्व कि गतिमान अर्थव्यवस्था बनाने में योगदान दिया। इस प्रक्रिया को भारत की अधिकांश गांवो में रहने वाली जनता भले न समझ रही हो लेकिन वह इतना जरुर समझ रही थी की भारत आगे बढ़ रहा है और यह बदलाव उसे दिखाई दे रहा था। वर्षो से गतिहीन अर्थव्यवस्था को गती मिली और आशावादी विचार ने प्रत्येक भारतीय के मानस को प्रभावित किया। इसलिए यह कहना कि यह चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया में ‘सकारात्मक विचार’ की जीत का चुनाव था कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा।

(लेखिका राजस्थान राज्य वित्त आयोग की अध्यक्ष एवं जानी—मानी अर्थशास्त्री है)