बिहार जनसंघ और डा. मुकर्जी का राष्ट्रीय अखंडता आंदोलन


Posted in:
06 Jul, 2019
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06 Jul, 2019

6 जुलाई 1901 को  भारत की एकता अखंडता के लिए अपना जीवन न्योछावर करने वाले जनसंघ के पहले अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी का प्रादुर्भाव हुआ था. इन्होंने जम्मू-कश्मीर में भारतीय एकता के लिए खतरनाक साबित हो रही शेखअब्दुल्लाह की अलगाववादी नीतियों के विरुद्ध देशव्यापी आन्दोलन चलाया था. इस आन्दोलन में बिहार की जनता ने  भी जनसंघ के नेतृत्व में भाग लिया. 1952 में  जम्मू-कश्मीर का चुनाव प्रजा-परिषद ने लड़ने का निर्णय लिया. लेकिन प्रजापरिषद् को शेखअब्दुल्ला सरकार के दमन का सामना करना पड़ा. प्रजापरिषद के उम्मीदवारों का किसी न किसी आधार पर नामांकन रद्द किया जाने लगा. इस परिस्थिति में केंद्र सरकार या चुनाव आयोग से कोई सहायता नहीं मिल रही थी. कांग्रेस पार्टी  जम्मू व कश्मीर में अपनी इकाई नहीं बनायीं थी.   कांग्रेस   नेशनल कांफ्रेंस को ही अपनी इकाई मानती थी.  ऐसी  परिस्थिति में प्रजा परिषद् के लिए चुनाव लड़ना मुश्किल होता जा रहा था. अंततः प्रजा परिषद् ने चुनाव का बहिष्कार करने का निर्णय लिया. परिणाम स्वरुप शेख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस कुल 75 सीटें जम्मू व कश्मीर के संविधान सभा में बिना लड़ें ही जीत गयी.

प्रजापरिषद् अब्दुल्ला सरकार द्वारा चुनाव में धांधली और जम्मू व कश्मीर के विशेष प्रावधान के खिलाफ आन्दोलन शुरू कर दिया.प्रजा परिषद् की मांग थी कि एक देश में दो विधान,दो निशान ,दो प्रधान नहीं चलेगा.

जनसंघ श्यामाप्रसाद मुकर्जी के नेतृत्व में प्रजा परिषद् के समर्थन में पूरे देश में आन्दोलन शुरू कर दिया. बिहार जनसंघ भी राष्ट्रीय अखंडता के आन्दोलन से अछुता नहीं रहा. बिहार जनसंघ राज्य के कोने-कोने में जाकर केंद्र सरकार की शेखअब्दुल्ला सरकार के प्रति उदासीनता,शेख अब्दुल्ला की  अलगाववादी नीतियों और जम्मू कश्मीर में प्रजापरिषद  के कार्यकर्ताओं के दमन के विरोध में जनमत तैयार करने में जुट गयी.

23 मार्च 1953 को एक राष्ट्रीय समाचार पत्र ने अपने रिपोर्ट में लिखा  कि जम्मू कश्मीर के इस अन्यापूर्ण युद्ध में बिहार पीछे नहीं रहेगा. कुवंर सिंह का बिहार फिर अंगड़ाई लेकर उठा है एवं तब तक चैन नहीं लेगा जबतक न्याय नहीं हो जाता. 5 मार्च, 1953 को जम्मू दिवस राज्य में बड़े उत्साह के साथ मनाया गया.प्रभात फेरिय,जुलुश एवं जनसभा कर जनता के समक्ष शेख अब्दुल्ला की नीतियों को पर्दाफास किया गया.

15 मार्च को 21 युवाओं का एक दल जिसका नेतृत्व पटना जिला जनसंघ के मंत्री श्री ब्रिजकिशोर प्रसाद बी.ए. कर रहे थे,दिल्ली के लिए रवाना किया गया. ये युवा दल जनसंघ कार्यलय से पटना स्टेशन तक एक जुलुस में गए.पुरे रस्ते ये नारे लगाते रहे “ कश्मीर हमारा है”, “अब्दुल्लाशाही मुर्दाबाद”, लाठी गोली की सरकार नहीं चलेगी”, “प्रजपरिषद अमर रहे”,  समाचारपत्र ने लिखा कि इनके नारे से सारा शहर गूंज उठा. स्टेशन पर इस सत्यग्रह दल को विदाई देने के लिए स्वयं बिहार प्रदेश जनसंघ के अध्यक्ष अधिवक्ता शिवकुमार द्विवेदी,प्रदेश उपाध्यक्ष अधिवक्ता श्री ठाकुर प्रसाद, संगठन मंत्री ताराकांत झा और बहुत से कार्यकर्ता उपस्थित थे.

26 अप्रिल 1953 को भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी का पटना प्रवास हुआ.डॉ. मुकर्जी के पटना प्रवास पर अख़बारों ने लिखा डॉ. मुकर्जी के भ्रमण से बिहार की राजनीति में एक परिवर्तन सा दिखने लगा है. अनेक कांग्रेसी अब यह खुलेआम कहने लेगे हैं कि प्रजा परिषद् की मांग उचित है. पटना के स्थानीय अख़बारों ने डॉ. मूकर्जी के भाषण को केवल प्रथम पृष्ठ पर प्रकशित ही नहीं किया बल्कि संपादकीय टिपण्णी भी लिखी.गाँधी मैदान में हजारों की  संख्या में जनता उनका भाषण सुनने पहुंची. दिल्ली सत्याग्रह में भाग लेने के लिए जा रहे सत्याग्रहियों के जत्थों का जिस प्रकार स्वागत हुआ वह ब्रिटिश सरकार के समय के असहयोग आन्दोलन की याद दिलाती है.जिलों में जत्थे तैयार हो रहे थे. और दिल्ली के लिए रवाना हो रहे हैं. यदि सत्याग्रह व्यपक रूप धारण किया तो बिहार भी दूसरे प्रदेशों से पिछे नहीं रहेगा.

दिल्ली में सरकार सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर रही थी.सत्याग्रहियों को जम्मू कश्मीर जाने के लिए पंजाब से होकर जाना पड़ता था.बहुत से सत्याग्राही पंजाब में ही गिरफ्तार कर लिए जाते थे. अप्रैल 1953 में भारतीय जनसंघ के जो तीन राज्यों के प्रधान पंजाब जेल में बंद किये गए उनमें बिहार के जनसंघ के प्रधान अधिवक्ता शिवकुमार द्विवेदी भी थे. और अन्य दो एक उत्तरप्रदेश के राजकुमार श्रीवास्तव थे और दूसरा विन्ध्य प्रदेश के राजकिशोर शुक्ल थे. इन्हें सरकार ने पंजाब में  ही गिरफ्तार करवाली थी. 1953 के जून के प्रथम सप्ताह तक लगभग दस हजार सत्याग्रहियों  को गिरफ्तार किया जा चूका था. इसी समय 20 सत्याग्रहियों का एक जत्था जम्मू-कश्मीर आन्दोलन में भाग लेने के लिए छपरा के प्रमुख व्यवसायी गोपाल प्रसाद गुप्ता के नेतृत्व में दिल्ली रवाना हुए.

डॉ. मुकर्जी का प्रयास था कि आन्दोलन अहिंसात्मक और शांति पूर्ण ढंग से चले. जम्मू कश्मीर की परिस्थितियों को जानने के लिए जनसंघ के उमाशंकर द्विवेदी और जी. वी देश्पंदेय को जम्मू भेजा गया.लेकिन दोनों को जम्मू-कश्मीर में प्रवेश से रोक दिया  गया. तब डॉ.मूकर्जी ने निर्णय लिया कि वे स्वयं जम्मू कश्मीर जायेंगे और वह भी बिना किसी परमिट के. डॉ. मुकर्जी ने कहा कि पंडित नेहरु कई बार कह चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर का  भारतीय संघ में सौ प्रतिशत विलय हो गया है. फिर भारत के नागरिक को जम्मू कश्मीर में प्रवेश के पहले परमिट लेने  की क्यों जरुरत पड़ती है?

गिरफ़्तारी की धमकी के बावजूद मुकर्जी जम्मू कश्मीर की ओर बिना परमिट का प्रस्थान कर गए.

अख़बारों ने लिखा कि अब्दुल्ला सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए डाले गए लौह आवरणों को तोड़कर मुकर्जी ने कश्मीर में घुसने की कोशिश की और अब्दुल्ला सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए.

23 जून 1953 को पुलिस हिरासत में उनकी मृत्यु की खबर आई.पटना समाचार पहुचते ही एक दम दुकाने एवं बाजार बंद हो गए. डॉक्टरों की एक सभा में मुकर्जी की मृत्यु के वास्तविक कारण का पता लगाने के लिए निष्पक्ष जाँच आयोग नियुक्त करने की मांग की.

डॉ. मुकर्जी के हत्या का असर बिहार पर व्यापक पड़ा. समाजवादी नेता जय प्रकाश नारायण(जे.पी) ने जाँच की मांग की. कश्मीर के इस सत्याग्रह में बिहार से 385  सत्याग्रहियो ने भाग लिया था. डॉ. मुकर्जी के बाद जिस सत्याग्रहियों का  जत्था ने कश्मीर में प्रवेश किया था,वह बिहार का ही था.